Thursday, January 23, 2020

Vikram Betal Stories in Hindi For Kids Very Short Sory

  Jayesh dabhi       Thursday, January 23, 2020
पुण्य किसका अधिक



पुण्य किसका अधिक

वर्धमान नाम के Ek नगर में रूपसेन नाम का Ek दयालु और न्यायप्रिय  Raja राज करता था। Ek दिन उसके यहाँ वीरवर नाम का Ek राजपूत नौकरी के लिए आया।

 Raja ने उससे पूछा कि- उसे ख़र्च के लिए क्या चाहिए?

तो वीरवर ने जवाब दिया- हज़ार तोले सोना।

 Raja को यह सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ।

 Raja ने पूछा- “तुम्हारे साथ कौन-कौन Hai?”

वीरवर ने जवाब दिया- “मेरी स्त्री, बेटा और बेटी।”  Raja को और भी अचम्भा हुआ। आख़िर चार जने इतने धन का क्या करेंगे? फिर भी  Raja ने सोचा जरूर कोई कारण होगा और उसने उसकी बात मान ली।

उस दिन से वीरवर रोज हज़ार तोले सोना भण्डारी से लेकर अपने घर आता। उसमें से आधा ब्राह्मणों में बाँट देता, बाकी के दो हिस्से करके Ek मेहमानों, वैरागियों और संन्यासियों को देता और दूसरे से भोजन बनवाकर पहले ग़रीबों को खिलाता, उसके बाद जो बचता, उसे स्त्री-बच्चों को खिलाता, आप खाता। काम यह था कि शाम होते ही ढाल-तलवार लेकर  Raja के पलंग की चौकीदारी करता।  Raja को जब कभी रात को ज़रूरत होती, वह हाज़िर रहता।

Ek दिन आधी रात के समय  Raja को मरघट की ओर से किसी के रोने की आवाज़ आयी। उसने वीरवर को पुकारा तो वह आ गया।

 Raja ने कहा- “जाओ, पता लगाकर आओ कि इतनी रात गये यह कौन रो रहा Hai ओर क्यों रो रहा Hai?”

वीरवर तत्काल वहाँ से चल दिया। मरघट में जाकर देखता क्या Hai कि सिर से पाँव तक Ek स्त्री गहनों से लदी कभी नाचती Hai, कभी कूदती Hai और सिर पीट-पीटकर रोती Hai। लेकिन उसकी आँखों से Ek बूँद आँसू नहीं निकलती।

वीरवर ने पूछा-“तुम कौन हो? क्यों रोती हो?”

स्त्री ने कहा-“मैं राज-लक्ष्मी हूँ। रोती इसलिए हूँ कि  Raja रूपसेन के घर में खोटे काम होते Haiं, इसलिए वहाँ दरिद्रता का डेरा पड़ने वाला Hai। मैं वहाँ से चली जाऊँगी और  Raja दु:खी होकर Ek महीने में मर जायेगा।

सुनकर वीरवर ने पूछा-“इससे बचने का कोई उपाय Hai!”

स्त्री बोली- “हाँ, Hai। यहां से पूरब में Ek योजन पर Ek देवी का मन्दिर Hai। अगर तुम उस देवी पर अपने बेटे का शीश चढ़ा दो तो विपदा टल सकती Hai। फिर  Raja सौ बरस तक बेखटके राज करेगा।”

वीरवर घर आया और अपनी स्त्री को जगाकर सब हाल कहा। स्त्री ने बेटे को जगाया, बेटी भी जाग पड़ी।

जब बालक ने बात सुनी तो वह खुश होकर बोला-“आप मेरा शीश काटकर ज़रूर चढ़ा दें। Ek तो आपकी आज्ञा, दूसरे स्वामी का काम, तीसरे यह देह देवता पर चढ़े, इससे बढ़कर बात और क्या होगी! आप जल्दी करें।”

वीरवर ने अपनी स्त्री से कहा- “अब तुम बताओ।”

स्त्री बोली- “स्त्री का धर्म पति की सेवा करने में Hai।”

निदान, चारों जने देवी के मन्दिर में पहुँचे। वीरवर ने हाथ जोड़कर कहा, “हे देवी, मैं अपने बेटे की बलि देता हूँ। मेरे  Raja की सौ बरस की उम्र हो।”

इतना कहकर उसने इतने ज़ोर से खांडा मारा कि लड़के का शीश धड़ से अलग हो गया। भाई का यह हाल देख कर बहन ने भी खांडे से अपना सिर अलग कर डाला। बेटा-बेटी चले गये तो दु:खी माँ ने भी उन्हीं का रास्ता पकड़ा और अपनी गर्दन काट दी। वीरवर ने सोचा कि घर में कोई नहीं रहा तो मैं ही जीकर क्या करूँगा। उसने भी अपना सिर काट डाला।

 Raja को जब यह मालूम हुआ तो वह वहाँ आया। उसे बड़ा दु:ख हुआ कि उसके लिए चार प्राणियों की जान चली गयी। वह सोचने लगा कि ऐसा राज करने से धिक्कार Hai! यह सोच उसने तलवार उठा ली और जैसे ही अपना सिर काटने को हुआ कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया।

देवी बोली-“राजन्, मैं तेरे साहस से प्रसन्न हूँ। तू जो वर माँगेगा, सो दूँगी।”

 Raja ने कहा- “देवी, तुम प्रसन्न हो तो इन चारों को जिला दो।” देवी ने अमृत छिड़ककर उन चारों को फिर से जिला दिया।

इतना कहकर Betal बोला- Vikram, बताओ, सबसे ज्यादा पुण्य किसका हुआ?”

Vikram बोला-“ Raja का।”

Betal ने पूछा-“क्यों?”

Vikram ने कहा- “इसलिए कि स्वामी के लिए चाकर का प्राण देना धर्म Hai; लेकिन चाकर के लिए  Raja का राजपाट को छोड़, जान को तिनके के समान समझकर देने को तैयार हो जाना बहुत बड़ी बात Hai।”

यह सुन Betal ग़ायब हो गया और पेड़ पर जा लटका और Vikram दौड़ा-दौड़ा उसे पीछे पकड़ने को भागा।

दोषी कौन



दोषी कौन

बनारस में देवस्वामी नाम का Ek ब्राह्मण रहता था। उसके हरिदास नाम का पुत्र था। हरिदास की बड़ी सुन्दर पत्नी थी। नाम था लावण्यवती। Ek दिन वे महल के ऊपर छत पर सो रहे The कि आधी रात के समय Ek गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला।

वह लावण्यवती के रूप पर मुग्ध होकर उसे उड़ाकर ले गया। जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी स्त्री नही Hai तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने को तैयार हो गया।

लोगों के समझाने पर वह मान तो गया; लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाय और स्त्री मिल जाय, वह घर से निकल पड़ा।

चलते-चलते वह किसी गाँव में Ek ब्राह्मण के घर पहुँचा। उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे कटोरा भरकर खीर दे दी और तालाब के किनारे बैठकर खाने को कहा। जिससे हाथ-मुँह धोने को पानी भी मिल जाये और प्यास लगने पर प्यास भी बुझाया जा सके। हरिदास खीर लेकर Ek पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहाँ रखकर तालाब मे हाथ-मुँह धोने गया।

इसी बीच Ek बाज किसी साँप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा और जब वह उसे खाने लगा तो साँप के मुँह से ज़हर टपककर कटोरे में गिर गया। हरिदास को कुछ पता नहीं था।

वह उस खीर को खा गया। ज़हर का असर होने पर वह तड़पने लगा और दौड़ा-दौड़ा ब्राह्मणी के पास आकर बोला, “तूने मुझे जहर दे दिया Hai।” इतना कहने के बाद हरिदास मर गया।

पति ने यह देखा तो ब्राह्मणी को ब्रह्मघातिनी कहकर घर से निकाल दिया।

इतना कहकर Betal बोला-“हे राजन् Vikram! बताओ कि साँप, बाज, और ब्राह्मणी, इन तीनों में अपराधी कौन Hai?”

 Raja Vikram ने कहा-“कोई नहीं। साँप तो इसलिए नहीं क्योंकि वह शत्रु के वश में था। बाज इसलिए नहीं कि वह भूखा था। जो उसे मिल गया, उसी को वह खाने लगा। ब्राह्मणी इसलिए नहीं कि उसने अपना धर्म समझकर उसे खीर दी थी और अच्छी खीर दी थी। जो इन तीनों में से किसी को दोषी कहेगा, वह स्वयं दोषी होगा।

इसलिए अपराधी ब्राह्मणी का पति था जिसने बिना विचारे ब्राह्मणी को घर से निकाल दिया।” इतना सुनकर Betal फिर पेड़ पर जा लटका और  Raja को वहाँ जाकर उसे लाना पड़ा।

त्याग किसका बड़ा



त्याग किसका बड़ा

गांधार देश में ब्रह्मदत्त नाम का  Raja राज करता। उसके राज्य में Ek वैश्य था, जिसका नाम हिरण्यदत्त था। उसके मदनसेना नाम की Ek कन्या थी।

Ek दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गयी। वहाँ संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था। वह मदनसेना को देखते ही उसपर ऐसा मोहित हुआ की उससे प्रेम करने लगा। घर लौटकर वह सारी रात उसके लिए बैचेन रहा। अगले दिन वह फिर बाग़ में गया।

मदनसेना वहाँ अकेली बैठी थी। उसके पास जाकर धर्मदत्त ने अपने प्रेम का प्रस्ताव रखा परन्तु मदनसेना ने इंकार कर दिया।

बहुत कहने पर भी जब मदनसेना न मानी तब उसने कहा, “तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण दे दूँगा।” और पास ही बह रही Ek नदी में कूद गया।

कुछ देर तक तो मदनसेना सोचती रही कि जब डूबने लगेगा तो खुद तैरकर बाहर निकल आयेगा लेकिन जब युवक डूबने के पश्चात भी तैरकर बाहर नहीं आया तब मदनसेना नदी में कूद पड़ी और उस युवक को बचा लायीं।

मदनसेना बोली- “तुम कितने मूर्ख हो, यदि नदी में डूब जाते तो…तुम तैरकर बाहर क्यों नहीं आये।”

“मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता। मैं मरने के लिए ही कूदा था, मुझे तैरना नहीं आता।”

मदनसेना का ह्रदय द्रवित हो गया वो कुछ न बोल सकी।

फिर धर्मदत्त बोला-  “मदनसेना मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ, मैं पूर्णिमा के दिन तुम्हारी प्रतिक्षा करूंगा, तुम आओगी।”

“यदि ईश्वर ने चाहा तो जरूर आऊंगी” इतना कहकर मदनसेना चली गयी।

उधर मदनसेना को देखने उसके घर लड़के वाले आये हुए The। मदनसेना के माता-पिता को लड़का बहुत पसंद था और उन सभी को मदनसेना।

बात कुछ ऐसी थी कि लड़के की दादी का अंत समय निकट था और वो मरने से पहले अपने पोते का विवाह होते देखना चाहती थी इसलिए आनन-फानन में दो दिनों में ही विवाह संपन्न करने का फैसला लिया गया।

मदनसेना अपने माता-पिता की इच्छा को इंकार न कर सकी। उसका विवाह हो गया और मदनसेना जब अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली, “आप मुझ पर विश्वास करें और मुझे अभय दान दें तो Ek बात कहूँ।” पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कह सुनायी।

सुनकर पति ने उसे चरित्रहीन समझा और उसे मन ही मन त्यागकर उसने जाने की आज्ञा दे दी और उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।

मदनसेना अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहन कर चली। रास्ते में उसे Ek चोर मिला। उसने उसका आँचल पकड़ लिया।

मदनसेना ने कहा-“तुम मुझे छोड़ दो। मेरे गहने लेना चाहते हो तो लो।”

चोर बोला-“मैं तो तुम्हें चाहता हूँ।”

मदनसेना ने उसे सारा हाल कहा-“पहले मैं वहां हो आऊँ, तब तुम्हारे पास आऊँगी।”

चोर ने उसे छोड़ दिया और वह भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।

मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुँची। उसे देखकर वह बड़ा खुश हुआऔर

धर्मदत्त ने मदनसेना से पूछा- “तुम अपने पति से बचकर कैसे आयी?”

मदनसेना ने सारी बात सच-सच कह दी। धर्मदत्त पर उसका बड़ा गहरा असर पड़ा। उसे मदनसेना के साथ समय बिताना अच्छा नहीं लग रहा था।

उसने मदनसेना को समझाकर वापस उसे घर जाने को कहा। मदनसेना चल पड़ी।

फिर वह चोर के पास आयी। चोर सब कुछ जानकर ब़ड़ा प्रभावित हुआ और उसे अपने आप पर ग्लानि महसूस हुयी।

उसने मदनसेना को बिना कुछ किये जाने दिया। इस प्रकार मदनसेना सबसे बचकर पति के पास आ गयी। पति ने भी सारा हाल देख लिया था वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसके साथ आनन्द से रहने लगा।

इतना कहकर Betal बोला- “बताओ Vikram! बताओ, अब तुम्हारा न्याय क्या कहता Hai। पति, धर्मदत्त और चोर, इनमें से कौन अधिक त्यागी Hai?”

Vikram ने कहा-“जो त्याग बिना स्वार्थ के किया जाता Hai वही सच्चा त्याग कहलाता Haiं। चोर का त्याग ही सबसे बड़ा त्याग Haiं। मदनसेना का पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने से त्याग देता Hai। धर्मदत्त उसे इसलिए छोड़ता Hai कि उसका मन बदल गया था, फिर उसे यह डर भी रहा होगा कि कहीं उसका पति उसे  Raja से कहकर दण्ड न दिलवा दे। लेकिन चोर का किसी को पता न था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया, न तो गहने ही लिए। इसलिए वह उन दोनों से अधिक त्यागी था।”

 Raja का यह जवाब सुनकर Betal बोला- “तुम सच में बड़े न्यायी हो, तुम्हारा न्याय विश्व में अमर होगा। और फिर पेड़ पर जा लटका।  Raja Vikramादित्य फिर उसके पीछे तेज कदमों से चल पड़े।

योगी क्यों रोया फिर क्यों हँसा



योगी क्यों रोया फिर क्यों हँसा

कलिंग देश में शोभावती नाम का Ek नगर Hai। उसमें  Raja प्रद्ययुम्न राज करता था। उसी नगरी में Ek ब्राह्मण रहता था, जिसके देवसोम नाम का बड़ा ही योग्य पुत्र था।

जब देवसोम सोलह बरस का हुआ और सारी विद्याएँ सीख चुका तो Ek दिन दुर्भाग्य से वह मर गया।

बूढ़े माँ-बाप बड़े दु:खी हुए। चारों ओर शोक छा गया। जब लोग उसे लेकर श्मशान में पहुँचे तो रोने-पीटने की आवाज़ सुनकर Ek योगी अपनी कुटिया में से निकलकर आया।

पहले तो वह खूब ज़ोर से रोया, फिर खूब हँसा, फिर योग-बल से अपना शरीर छोड़ कर उस लड़के के शरीर में घुस गया। लड़का उठ खड़ा हुआ। उसे जीता देखकर सब बड़े खुश हुए।

फिर वह लड़का वही तपस्या करने लग गया।

इतना कहकर Betal बोला- “राजन् Vikram, यह बताओ कि वह योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा? तुम्हें याद Hai न यदि तू उत्तर जानते हुए भी नहीं बताएगा तो तेरा सिर फट जाएगा।”

Vikram को इसका जबाव पता था उसने कहा- “इसमें क्या बात Hai! वह रोया इसलिए कि जिस शरीर को उसके माँ-बाप ने पाला-पोसा और जिससे उसने बहुत-सी शिक्षाएँ प्राप्त कीं, उसे छोड़ रहा था। हँसा इसलिए कि वह नये शरीर में प्रवेश करके और अधिक सिद्धियाँ प्राप्त कर सकेगा।”

 Raja का यह जवाब सुनकर Betal फिर पेड़ पर जा लटका।  Raja जाकर फिर उसे पकड़ लाया तब मार्ग में उसने अगली कहानी सुनाई।

तीन अजूबे भाई



तीन अजूबे भाई

अंग देश के Ek गाँव मे Ek धनी ब्राह्मण रहता था। उसके तीन पुत्र The। Ek बार ब्राह्मण ने Ek यज्ञ करना चाहा। उसके लिए Ek समुद्री कछुए की जरूरत हुई। उसने तीनों भाइयों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों समुद्र पर पहुँचे। वहाँ उन्हें Ek कछुआ मिल गया।

बड़े ने कहा- “मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए कछुए को नहीं छुऊँगा।”

मझला बोला- “मैं नारीचंग हूँ, मैं नहीं ले जाऊँगा।”

सबसे छोटा बोला- “मैं शैयाचंग हूँ, सो मैं नहीं ले जाऊँगा।”

वे तीनों इस बहस में पड़ गये कि उनमें कौन बढ़कर Hai। जब वे आपस में इसका फैसला न कर सके तो  Raja के पास पहुँचे।

 Raja ने कहा- “आप लोग रुकें। मैं तीनों की अलग-अलग जाँच करूँगा।”

इसके बाद  Raja ने बढ़िया भोजन तैयार कराया और तीनों खाने बैठे।

सबसे बड़े ने कहा- “मैं खाना नहीं खाऊँगा। इसमें मुर्दे की गन्ध आती Hai।” वह उठकर चला।  Raja ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन श्मशान के पास के खेत का बना था।

 Raja ने कहा- “तुम सचमुच भोजनचंग हो, तुम्हें भोजन की पहचान Hai।”

रात के समय  Raja ने Ek सुन्दर स्त्री को मझले भाई के पास भेजा।

स्त्री जैसे ही वहाँ पहुँची कि मझले भाई ने कहा- “इसे हटाओ यहाँ से। इसके शरीर से बकरी की दूध की गंध आती Hai।”

 Raja ने यह सुनकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह स्त्री बचपन में बकरी के दूध पर पली थी।

 Raja बड़ा खुश हुआ और बोला- “तुम सचमुच नारीचंग हो।”

इसके बाद तीसरे भाई की बारी आई- तीसरे भाई को सोने के लिए सात गद्दों का पलंग दिया। जैसे ही वह उस पर लेटा कि Ekदम चीखकर उठ बैठा। लोगों ने देखा, उसकी पीठ पर Ek लाल रेखा खींची थी।  Raja को ख़बर मिली तो उसने बिछौने को दिखवाया। सात गद्दों के नीचे उसमें Ek बाल निकला। उसी से उसकी पीठ पर लाल लकीर हो गयी थीं।

 Raja को बड़ा अचरज हुआ उसने तीनों को Ek-Ek लाख अशर्फियाँ दीं। अब वे तीनों कछुए को ले जाना भूल गये, वहीं आनन्द से रहने लगे।

इतना कहकर Betal बोला- “हे राजन Vikram! तुम बताओ, उन तीनों में से बढ़कर कौन था?”

 Raja Vikram ने कहा- “मेरे विचार से सबसे बढ़कर शैयाचंग था, क्योंकि उसकी पीठ पर बाल का निशान दिखाई दिया और ढूँढ़ने पर बिस्तर में बाल पाया भी गया। बाकी दो के बारे में तो यह कहा जा सकता Hai कि उन्होंने किसी से पूछकर जान लिया होगा।”

इतना सुनते ही Betal फिर पेड़ पर जा लटका।  Raja लौटकर वहाँ गया और उसे लेकर लौटा तो उसने अगली कहानी कही।

पत्नी किसकी हो



पत्नी किसकी हो

धर्मपुर नाम की Ek नगरी थी। उसमें धर्मशील नाम का  Raja राज करता था। उसके अन्धक नाम का दीवान था।

Ek दिन दीवान ने कहा-“महाराज, Ek मन्दिर बनवाकर देवी को बिठाकर पूजा की जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा।”

 Raja ने ऐसा ही किया। Ek दिन देवी ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा।  Raja के कोई सन्तान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र माँगा।

देवी बोली-“अच्छी बात Hai, तुझे बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा।”

कुछ दिन बाद  Raja को Ek लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी खुशी मनायी गयी।

Ek दिन Ek धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया। उसकी निगाह देवी के मन्दिर में पड़ी। उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसी समय उसे Ek धोबी की लड़की दिखाई दी, जो बड़ी सुन्दर थी। उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने मन्दिर में जाकर देवी से प्रार्थना की, “हे देवी! यह लड़की मुझे मिल जाये। अगर मिल गयी तो मैं अपना सिर तुझपर चढ़ा दूँगा।”

इसके बाद वह हर घड़ी बेचैन रहने लगा। उसके मित्र ने उसके पिता से सारा हाल कहा। अपने बेटे की यह हालत देखकर वह लड़की के पिता के पास गया और उसके अनुरोध करने पर दोनों का विवाह हो गया।

विवाह के कुछ दिन बाद लड़की के पिता के यहाँ उत्सव हुआ। इसमें शामिल होने के लिए न्यौता आया। मित्र को साथ लेकर धोबी और उसकी पत्नी चले। रास्ते में उसी देवी का मन्दिर पड़ा तो धोबी को अपना वादा याद आ गया।

उसने मित्र और स्त्री को थोड़ी देर रुकने को कहा और स्वयं जाकर देवी को प्रणाम कर के इतने ज़ोर-से तलवार मारी कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया।

देर हो जाने पर जब उसका मित्र मन्दिर के अन्दर गया तो देखता क्या Hai कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा Hai। उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी Hai। कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपने-आप शीश चढ़ाया Hai। सब यही कहेंगे कि इसकी सुन्दर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने इसकी गर्दन काट दी। इससे कहीं मर जाना अच्छा Hai। यह सोच उसने तलवार लेकर अपनी गर्दन उड़ा दी।

उधर बाहर खड़ी-खड़ी स्त्री Haiरान हो गयी तो वह मन्दिर के भीतर गयी। देखकर चकित रह गयी। सोचने लगी कि दुनिया कहेगी, यह बुरी औरत होगी, इसलिए दोनों को मार आयी इस बदनामी से मर जाना अच्छा Hai। यह सोच उसने तलवार उठाई और जैसे ही गर्दन पर मारनी चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया|

और तभी देवी ने कहा-“मैं तुझपर प्रसन्न हूँ। जो चाहो, सो माँगो।”

स्त्री बोली-“हे देवी! इन दोनों को जिन्दा कर दो।”

देवी ने कहा-“अच्छा, तुम दोनों के सिर मिलाकर रख दो।”

घबराहट में स्त्री ने सिर जोड़े तो गलती से Ek का सिर दूसरे के धड़ पर लग गया। देवी ने दोनों को जिन्दा कर किया|

अब वे दोनों आपस में झगड़ने लगे। Ek कहता था कि यह स्त्री मेरी Hai, दूसरा कहता मेरी।

इतनी कहानी सुनाने के बाद Betal रूक गया।

कुछ देर बाद Betal बोला- “हे राजन् Vikram! बताओ कि यह स्त्री किसकी हो?”

 Raja Vikram ने कहा-“नदियों में गंगा उत्तम Hai, पर्वतों में सुमेरु, वृक्षों में कल्पवृक्ष और अंगों में सिर। इसलिए जिस शरीर पर पति का सिर लगा हो, वही पति होना चाहिए।”

इतना सुनकर Betal फिर पेड़ पर जा लटका और  Raja Vikram Betal को पकड़ने के लिए उसके पीछे भागे।

सज्जनता किसकी अधिक



सज्जनता किसकी अधिक

मिथलावती नाम की Ek नगरी थी। उसमें गुणधिप नाम का  Raja राज करता था। वह बड़ा ही प्रतापी और यशस्वी था उसे शिकार खेलने का बड़ा शौक था।

Ek दिन  Raja शिकार खेलने चला। सैनिक भी साथ हो लिये। चलते-चलते  Raja Ek घने वन में पहुँचा। कुछ ही देर बाद  Raja को Ek मृग दिखाई दिया। वह उसके पीछे चल पड़ा। हिरण का पीछा करते-करते  Raja के सैनिक उससे बिछड़ गये।  Raja जंगल के बीचोंबीच पहुंच गया लेकिन हिरण पकड़ में नही आया।  Raja ने पीछे मुड़ कर देखा दूर-दूर तक कोई नहीं था। उसके नौकर-चाकर, सैनिक, मंत्री सब बिछुड़ गये The।

“देखो, भाग्य का खेल देखों।”

 Raja उस डरावने जंगल में भी निडर था लेकिन उसे Ek बात बड़ी बेचैन कर रही थीं वह थी भूख। भूख-प्यास के कारण  Raja का बुरा हाल था तभी Ek लकड़हारे ने  Raja को टोका।

 Raja ने जब उस सुनसान जंगल में मनुष्य की आवाज सुनी तो बहुत प्रसन्न हुआ।  Raja के पूछने पर लकड़हारे ने बताया, वह इस वन में लकड़ी काटने आता Hai। उसने  Raja को भूखा देख अपना भोजन  Raja को दिया।  Raja अपनी त्रास मिटाने लगा और दोनों में बातचीत शुरू हुई।

राजन्, सज्जनता हर मनुष्य को Ek-दूसरे की मदद करने के लिए प्रेरित करती Haiं और छ: बातें आदमी को हल्का करती Haiं—खोटे नर की प्रीति, बिना कारण हँसी, स्त्री से विवाद, असज्जन स्वामी की सेवा, गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा। और हे  Raja, ये पाँच चीज़ें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता Hai—आयु, कर्म, धन, विद्या और यश। राजन्, जब तक आदमी का पुण्य उदय रहता Hai, तब तक उसके बहुत-से दास रहते Haiं। जब पुण्य घट जाता Hai तो भाई भी बैरी हो जाते Haiं। पर Ek बात Hai, स्वामी की सेवा अकारथ नहीं जाती। कभी-न-कभी फल मिल ही जाता Hai।”

यह सुन  Raja के मन पर उसका बड़ा असर हुआ। जंगल से निकलने के बाद उस लकड़हारे को अपने साथ ले  Raja नगर में लौट आये।  Raja ने उसे अपने यहाँ सिपहसालार बना लिया। उसे बढ़िया-बढ़िया कपड़े और गहने दिये।

Ek दिन वो सिपहसालार किसी काम से कहीं गया। रास्ते में उसे देवी का मन्दिर मिला। उसने अन्दर जाकर देवी की पूजा की। जब वह बाहर निकला तो देखता क्या Hai, उसके पीछे Ek सुन्दर स्त्री चली आ रही Hai। वह उसे देखते ही उसकी ओर आकर्षित हो गया।

स्त्री ने कहा-“पहले तुम कुण्ड में स्नान कर आओ। फिर जो कहोगे, सो करूँगी।”

इतना सुनकर सिपहसालार कपड़े उतारकर जैसे ही कुण्ड में घुसा और गोता लगाया कि अपने नगर में पहुँच गया। उसने जाकर  Raja को सारा हाल कह-सुनाया।

 Raja ने कहा-“यह अचरज मुझे भी दिखाओ।”

दोनों घोड़ों पर सवार होकर देवी के मन्दिर पर आये। अन्दर जाकर दर्शन किये और जैसे ही बाहर निकले कि वह स्त्री प्रकट हो गयी।

 Raja को देखते ही देवी बोली-“महाराज, मैं आपके रूप पर मुग्ध हूँ। आप जो कहेंगे, वही करुँगी।”  Raja भी उस रूपवती पर मुग्ध हो गये The।

 Raja ने संभलकर कहा-“ऐसी बात Hai तो तू मेरे इस सेवक से विवाह कर ले।”

स्त्री बोली- “यह नहीं होगा। मैं तो तुम्हें चाहती हूँ।”

 Raja ने कहा-“सज्जन लोग जो कहते Haiं, उसे निभाते Haiं। तुम अपने वचन का पालन करो।” इसके बाद  Raja ने उसका विवाह अपने सेवक से करा दिया।

इतना कहकर Betal बोला- “हे राजन् Vikram! यह बताओ कि  Raja और सेवक, दोनों में से किसका काम बड़ा हुआ? किसकी सज्जनता अधिक थी?”

 Raja Vikram ने कहा-“नौकर का।”

Betal ने पूछा-“वौ कैसे?”

 Raja Vikram बोले-“उपकार करना  Raja का तो धर्म ही था। इसलिए उसके उपकार करने में कोई खास बात नहीं हुई। लेकिन जिसका धर्म नहीं था, उसने उपकार किया तो उसका काम बढ़कर हुआ? इसलिये लकड़हारा कि ही सज्जनता ज्यादा Hai”

इतना सुनकर Betal फिर पेड़ पर जा लटका और  Raja जब उसे पुन: लेकर चला तो उसने  Raja को राह में फिर Ek कहानी सुनायी।

श्रेष्ठ वर कौन



श्रेष्ठ वर कौन

मगध देश में महाबल नाम का Ek  Raja राज्य करता था । जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। वह अद्वितीय रूपवती थीं। जब वह विवाह योग्य हुई तो  Raja को बहुत चिन्ता होने लगी।

बहुत से राजकुमार आये लेकिन राजकुमारी को कोई पसंद न आया।  Raja ने सोचा जो राजकुमार शक्तिशाली और गुणवान होगा उसी से राजकुमारी का विवाह होगा।

Ek दिन Ek राजकुमार राजदरबार में आया और बोला- “मैं राजकुमारी का हाथ मांगने आया हूँ।”

 Raja ने कहाँ-“मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जिसमें सब गुण होंगे।”

राजकुमार ने कहा-“मेरे पास Ek ऐसा रथ Hai, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो, घड़ी-भर में पहुँच जाओगे।”

 Raja बोला-“ठीक Hai। कुछ दिन इंतजार करें, मैं राजकुमारी से पूछकर बताता हूँ।”

फिर Ek दिन Ek और राजकुमार आया और उसने कहा- “मैं त्रिकालदर्शी हूँ। मैं भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों की बातें बता सकता हूँ।”

 Raja ने उसे भी इंतजार करने को कहा।

कुछ दिन बाद Ek और राजकुमार आया। जब  Raja ने उससे पूछा कि आपमें क्या गुण Haiं तब....

उस तीसरे राजकुमार ने कहा- “मैं धनुर्विद्या में निपुण हूँ। धनुष चलाने में मेरा कोई मुकाबला नहीं कर सकता।”

इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गये।  Raja सोचने लगा कि कन्या Ek Hai, राजकुमार तीन Haiं। तीनों ही सुंदर और गुणवान Haiं। क्या करे! इसी बीच Ek राक्षस आया और राजकुमारी को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले गया। तीनों वरों में जो त्रिकालदर्शी था|

 Raja ने उस त्रिकालदर्शी राजकुमार से कहा- तो उसने बता दिया कि Ek राक्षस राजकुमारी को उड़ा ले गया Hai और वह विंध्याचल पहाड़ पर Hai।

दूसरे राजकुमार ने कहा-“मेरे रथ पर बैठकर चलो। ज़रा सी देरी में वहाँ पहुँच जायेंगे।”

तीसरा राजकुमार बोला-“मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ। राक्षस को मार गिराऊँगा।”

वे सब रथ पर चढ़कर विंध्याचल पहुँचे और राक्षस को मारकर राजकुमारी को बचा लाये।

इतना कहकर Betal बोला- “हे राजन् Vikram! न्यायी Vikram, अब तुम न्याय करो। बताओ, वह राजकुमारी उन तीनों में से किसको मिलनी चाहिए?”

 Raja Vikram ने कहा- “जिसने राक्षस को मारा, उसकों मिलनी चाहिए, क्योंकि असली वीरता तो उसी ने दिखाई। बाकी दो ने तो सिर्फ मदद की।”  Raja का इतना कहना था कि Betal फिर पेड़ पर जा लटका और  Raja Vikram फिर Betal के पीछे दोडे।

वह सुंदरी किसे मिलेगी



वह सुंदरी किसे मिलेगी

यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक Ek नगर था। उस नगर में गणाधिप नाम का  Raja राज करता था। उसी में केशव नाम का Ek ब्राह्मण भी रहता था। ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप किया करता था। उसकी Ek पुत्री थी, जिसका नाम मालती था। वह बड़ी रूपवती थी।

जब वह ब्याह के योग्य हुई तो उसके माता, पिता और भाई को चिन्ता हुई। संयोग से Ek दिन जब ब्राह्मण अपने किसी यजमान की बारात में गया था और भाई पढ़ने गया था, तभी उनके घर में Ek ब्राह्मण का लड़का आया। लड़की की माँ ने उसके रूप और गुणों को देखकर उससे कहा कि मैं तुमसे अपनी लड़की का ब्याह करूँगी।

उधर ब्राह्मण पिता को भी Ek दूसरा लड़का मिल गया और उसने उस लड़के को भी यही वचन दे दिया। उधर ब्राह्मण का लड़का जहाँ पढ़ने गया था, वहां वह Ek लड़के से यही वादा कर आया।

कुछ समय बाद बाप-बेटे घर में इकट्ठे हुए तो देखते क्या Haiं कि वहां Ek तीसरा लड़का और मौजूद Hai। दो उनके साथ आये The। अब क्या हो? ब्राह्मण, उसका लड़का और ब्राह्मणी बड़े सोच में पड़े। दैवयोग से हुआ क्या कि लड़की को साँप ने काट लिया और वह मर गयी।

उसके बाप, भाई और तीनों लड़कों ने बड़ी भाग-दौड़ की, ज़हर झाड़नेवालों को बुलाया, पर कोई नतीजा न निकला। सब अपनी-अपनी करके चले गये।

दु:खी होकर वे उस लड़की को श्मशान में ले गये और क्रिया-कर्म कर आये। तीनों लड़कों में से Ek ने तो उसकी हड्डियाँ चुन लीं और फकीर बनकर जंगल में चला गया। दूसरे ने राख की गठरी बाँधी और वहीं झोपड़ी डालकर रहने लगा। तीसरा योगी होकर देश-देश घुमने लगा।

Ek दिन की बात Hai, वह तीसरा लड़का घूमते-घामते किसी नगर में पहुँचा और Ek ब्राह्मण के घर भोजन करने बैठा। उस ब्राह्मण का बेटा  Raja के यहां सैनिक था। भोजन के दौरान ही कुछ सैनिक ब्राह्मण के बेटे की शव लेकर आये और वो सभी घटना ब्राह्मण को बता दी जिसके कारण उसका बेटा मरा था।

ब्राह्मणी रोने लगी, वह योगी भी भोजन छोड़ उठ खड़ा हुआ। ब्राह्मणी का विलाप उसके पति से नही देखा गया। ब्राह्मण के पास उसके पूर्वजों की दी हुयी संजीवनी विद्या की पोथी थी। ब्राह्मण ने संजीवनी विद्या की पोथी लाकर जैसे ही Ek मन्त्र पढ़ा। उसका मरा हुआ लड़का फिर से जीवित हो गया।

यह देखकर वह योगी सोचने लगा कि अगर यह पोथी मेरे हाथ पड़ जाये तो मैं भी उस लड़की को फिर से जिला सकता हूँ। इसके बाद उसने भोजन किया और वहीं ठहर गया। जब रात को सब खा-पीकर सो गये तो वह योगी चुपचाप वह पोथी लेकर चल दिया। जिस स्थान पर उस लड़की को जलाया गया था, वहां जाकर उसने देखा कि दूसरे लड़के वहां बैठे बातें कर रहे Haiं।

इस लड़के के यह कहने पर कि उसे संजीवनी विद्या की पोथी मिल गयी Hai और वह मन्त्र पढ़कर लड़की को जिला सकता Hai, उन दोनों ने हड्डियाँ और राख निकाली। ब्राह्मण ने जैसे ही मंत्र पढ़ा, वह लड़की जी उठी। अब तीनों उसके पीछे आपस में झगड़ने लगे।

इतना कहकर Betal बोला-“हे राजन् Vikram, बताओ कि वह लड़की किसकी स्त्री होनी चाहिए?”

 Raja Vikram ने जवाब दिया-“जो वहां कुटिया बनाकर रहा, उसकी।”

Betal ने पूछा-“क्यों?”

 Raja Vikram बोले-“जिसने हड्डियाँ रखीं, वह तो उसके बेटे के बराबर हुआ। जिसने विद्या सीखकर जीवन-दान दिया, वह बाप के बराबर हुआ। जो राख लेकर रमा रहा, वही उसकी हक़दार Hai।”

Vikram का यह जवाब सुनकर Betal ने कहा- “तुमने बहुत अच्छा गणित किया परन्तु अपनी शर्त भूल गये और फिर Betal पीपल के पेड़ पर जा लटका। Vikram को फिर लौटना पड़ा|

चार पढ़े लिखे मूर्ख



चार पढ़े लिखे मूर्ख

कुसुमपुर नगर में Ek  Raja राज्य करता था। उसके नगर में Ek ब्राह्मण था, जिसके चार बेटे The। लड़कों के सयाने होने पर ब्राह्मण मर गया और ब्राह्मणी उसके साथ सती हो गयी। उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया। वे चारों भाई नाना के यहाँ चले गये।

लेकिन कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा। तब सबने मिलकर सोचा कि कोई विद्या सीखनी चाहिए।

यह सोच करके चारों चार दिशाओं में चल दिये। कुछ समय बाद वे विद्या सीखकर मिले।

Ek ने कहा-“मैंने ऐसी विद्या सीखी Hai कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूँ।”

दूसरे ने कहा-“मैं उसके खाल और बाल पैदा कर सकता हूँ।”

तीसरे ने कहा- “मैं उसके सारे अंग बना सकता हूँ।”

चौथा बोला- “मैं उसमें जान डाल सकता हूँ।”

फिर वे अपनी विद्या की परीक्षा लेने जंगल में गये। वहाँ उन्हें Ek मरे शेर की हड्डियाँ मिलीं। उन्होंने उसे बिना पहचाने ही उठा लिया तथा Ekत्र करके ले आये।

Ek ने उसमें माँस डाला, दूसरे ने खाल और बाल पैदा किये, तीसरे ने सारे अंग बनाये और चौThe ने उसमें प्राण डाल दिये और तब शेर जीवित हो उठा, वह भूखा था। उसने चारों को मार कर खा गया।

यह कथा सुनाकर Betal बोला-“हे राजन Vikram, बताओ कि उन चारों में शेर बनाने का अपराध किसने किया?”

 Raja Vikram ने कहा-“जिसने प्राण डाले उसने, क्योंकि बाकी तीन को यह पता ही नहीं था कि वे शेर बना रहे Haiं। इसलिए उनका कोई दोष नहीं Hai।”

यह सुनकर Betal बोला- राजन् तुमने मार्ग में न बोलने की शर्त तोड़ दी और वह फिर पेड़ पर जा लटका।  Raja Vikram फिर से Betal को पकड़ने के लिए भागा।

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